केजरीवाल की राजनीति को दिखाती कविता

डूब गयी थी अंधकार में, धुंधली सब तस्वीरे थी
कांग्रेस का राज्य था फैला, कठपुतली सी हीरे थी

तभी एक जुगनू सा चमका, लोकतंत्र के पाये में
लोगो को उम्मीद जगी इस, अन्ना के छोटे साये में
kejri

हाथ बढ़ाया हाथ मिलाया, अपने को तो आम कहा
लोकतंत्र के इस मंदिर में, जय जय जय श्री राम कहा

लोग भी सोचे ये अच्छा है, आगे हमे बढ़ायेगा
लोगो के दुःख दूर करेगा, अपना उन्हें बनायेगा

फ्री में पानी फ्री में बिजली, WIFI फ्री दिलवाएगा
दिल्ली को भी एक दिन, पेरिस जैसा बनवायेगा

लेकिन ये तो चालबाज था, शातिर चाले खेल गया
अपने तो ये आगे निकला, अन्ना को पीछे ढेल गया

कहने को तो CM था, लेकिन हरकत शैतानी थी
राजमहल में बैठ गया ये, सब दिल्ली की नादानी थी

हिन्दू होकर भी इसने, बाबर की भाषा बोला था
देशद्रोहियो के संग मिलकर, मोर्चा इसने खोला था

अपनी सत्ता बनी रहे, इसलिए जहर फैलाया था
जातिवाद में सदा लड़े, ये ऐसी आग लगाया था

रोहित, दादरी जैसो पर ये, साथ खड़ा हो जाता था
डॉक्टर नारंग की हत्या पर, बिल में ये छुप जाता था

लोगो को ये मूर्ख बनाकर, 67 सीटे ले आया
दिल्ली को अधिकार नही है, ये कह के सबको भरमाया

नशे में सत्ता के इसने, सेना पर दोष लगाया था
नफरत में मोदी के इसने, राष्टद्रोह अपनाया था

JNU में जाकर इसने, उनसे हाथ मिलाया था
सरेआम जिन लोगो ने, भारत माँ को धमकाया था

गुरमेहर जैसी लड़की का, ब्रेनवाश कर डाला था
उमर कन्हिया से मिलकर, भारत को मारा भाला था

रोज नए ड्रामे करता, गिरगिट सा रंग बदलता था
किसी तरह PM बन जाऊं, इसीलिए ये मचलता था

नित नित नए बहाने करके, मोदी को बहुत सताया था
काम ना कोई कर पाये, इसलिए सदा उलझाया था

लेकिन जनता जान चुकी थी, इस गिरगिट की भाषा को
इसलिए रूसवा कर डाली, MCD की अभिलाषा को

लेकिन ये तो चालबाज है, हार ना अपनी मानेगा
EVM की ये करामात कह, हार उसी पर डालेगा

– संगम मिश्रा

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