मार्च के महीने में ऑफिस में बैठा कही घूमने जाने का सोच रहा था, तभी मेरी निगाह होली और उसके अगले दिन गुड फ्राइडे की छुट्टियों पर पड़ी। मैंने सोचा कि क्यों ना इस छुट्टियों का कही घूमने जाने में उपयोग किया जाये। मेरा घूमने जाने का विचार सुन के, एक सहकर्मी विनोद गुप्ता भी साथ जाने के लिए तैयार हो गया।
23 मार्च 2016 को ऑफिस का काम निपटा कर हम दोनों मेरी पल्सर 150CC पर शाम के 7 बजे मोहन एस्टेट मथुरा रोड दिल्ली से निकले।
लम्बा सप्ताहंत होने के कारण ऐसा लग रहा था कि हर कोई दिल्ली छोड़ के जा रहा है, चारो तरफ जाम लगा हुआ था। हम लोग भी किसी तरह, जाम में बचते-बचाते मुकरबा चौक बाईपास पर पहुचे।
रात के 8 बज रहे थे और हम अभी भी दिल्ली में ही थे, मुकरबा चौक पर थोड़ी देर रुकने के बाद हमने अम्बाला के लिए अपनी यात्रा शुरू किया जहाँ विनोद का एक दोस्त रहता था। दिल्ली और हरियाणा में पेट्रोल-डीजल के कीमत में अंतर होने के कारण दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर कई सारे पेट्रोल पंप है। हमने भी उसी में से एक पेट्रोल पंप पर बाइक की टंकी फुल करवायी और अम्बाला के लिए चल दिये।
दिल्ली से चंडीगढ़ की सड़क बहुँत ही अच्छी अवस्था में है, रात का समय होने के बावजूद बाइक बड़े आराम से 70-80Kmph की रफ़्तार पर चल रही थी। हालांकि मैं बाइक बहुत तेज़ नहीं चलता और रात में तो 60Kmph से तेज तो बिल्कुल भी नहीं लेकिन एक तो देर हो रही थी और दूसरा सड़क भी बहुत अच्छी अवस्था में थी इसलिए कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।
थोड़ी देर चलने के बाद हमलोग पानीपत टोल प्लाजा पर पहुचे, टोल प्लाजा पार करते ही कई सारी छोटी -छोटी खाने की दुकानें है। वही पर हमने चाय-नमकीन खाया और थोड़ी देर विश्राम किया।
विनोद के दोस्त ने अपनी लोकेशन पहले ही हमे भेज दिया था इसलिए हमे वहां पहुचने में कोई परेशानी नहीं हुई।
रात के 11:30 हो रहे थे जब हम उसके घर पहुँचे। उसके दोस्त ने हमलोगों के आने की ख़ुशी में चिकेन करी और चावल बनाया हुआ था। हमलोग भी बाइक चलाने की वजह से थोड़ा थके हुए थे इसलिए पहले नहाएं और उसके बाद खाना खाने के लिए बैठे। खाना बहुँत ही स्वादिष्ट बना हुआ था और खाने के बाद तो मन यही कह रहा था कि बस अब सो जाएं लेकिन विनोद अपने दोस्त से काफी समय बाद मिला था इसलिए आपस में घर-समाज और देश-दुनिया की बातचीत होने लगी.
हमारी ये बातचीत रात के दो बजे तक चलती रही और अंत में ये निष्कर्ष निकला कि अब हमलोग यहाँ से शिमला जायँगे।
पहाड़ी रास्तो पर बाइक चलाने का मुझे कोई अनुभव तो नहीं था, मैं इससे पहले सिर्फ 2-3 बार हरिद्वार और ऋषिकेश तक गया था लेकिन ये विश्वास था कि थोड़ी दूर चलाने के बाद दिक्कत नहीं होगी।
अगले दिन सुबह की 7 बजे हमलोग अंबाला से निकले। सुबह-सुबह बाइक चलाने में बहुँत आनन्द आ रहा था। हमारा अगला स्टॉप सोलन था, यहाँ हमलोग थोड़ी देर के लिए रुके और कुछ चाय-नाश्ता किया, फिर आगे बढे।
Road condition on the way to Shimla
रास्ते के नज़ारे मनमोहक थे और ऊपर से पहाड़ी रास्तो पर बाइक चलाने का अपना अलग ही मज़ा आ रहा था. थोड़ी देर के बाद हमलोग कण्डाघाट पहुँचे और दोपहर के खाने के लिए एक ढाबे पर रुके। होली का दिन होने के कारण चारो तरफ लोग रंगों में सराबोर होकर एक-दूसरे के साथ होली खेलने में लगे हुए थे।
हमने ढाबेवाले को परांठे और चाय के लिए बोला और स्थानीय लोगो की होली खेलते हुए देखने लगे। थोड़ी देर बाद जब परांठे तैयार हो गए तब हम ढाबे में वापस आएं और जम के गरमा-गरम परांठा, दही, और आचार का मजा उठाया।
खाना खाने के बाद हम बाहर आये और धीरे-धीरे अपनी बाइक की तरफ जा रहे थे कि कुछ स्थानीय लड़कियों और बच्चो ने हमे अपने साथ होली खेलने के लिया रोक लिया।
उनके साथ थोड़ी देर होली खेलने के बाद, हमलोग शिमला की तरफ चल दिए। रास्ते में जगह-जगह लोग आपस में होली खेल रहे थे और हमलोग उनसे बचते-बचाते शिमला पहुँचे।
सुबह को जब हमने शिमला जाने के लिये सोचा, उसी समय इन्टरनेट से एक होटल बुक कर लिया था। होटल शिमला के ऊपरी हिस्से में था जहाँ पर जाखू मंदिर वाली सड़क से होते हुए जाने का रास्ता था। अतः हमलोग स्थानीय लोगो से पूछते हुए सीधे होटल पहुँचे।
होटल का कमरा साफ-सुथरा और आरामदायक था। हमने होटल में जाकर नहाया और थोड़ी देर आराम किया फिर शिमला घूमने के लिए निकल पड़े।
सबसे पहले हम जाखू मंदिर गए। हमने अपनी बाइक को मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते पर खड़ा किया और पैदल ही मंदिर की तरफ चल दिए। रास्ता ज्यादा चौड़ा नहीं था और चढ़ाई भी थोड़ी तेज़ थी, लोग अपनी या किराये की कार से भी जा रहे थे लेकिन मुझे ऐसे रास्तो पर बाइक चलाने का कोई अनुभव नहीं था इसलिए पैदल ही जाना ठीक समझा।
जाखू मंदिर हनुमान जी को समर्पित है जहाँ पर एक बहुत ऊँची सी हनुमान जी की मूर्ति लगी है और साथ में मंदिर है।
जाखू मंदिर की चढ़ाई वैसे तो ज्यादा मुश्किल नहीं है लेकिन पहाड़ो पर चढ़ाई का कोई अनुभव नहीं होने के कारण मंदिर तक पहुचने में हमे एक घंटे का समय लग गया।
मंदिर के आस-पास बहुँत सारे बन्दर उछल-कूद मचा रहे थे और कभी-कभी तो वे लोगो के हाथ से मोबाइल/कैमरा भी छीनने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमने भी अपने फ़ोन और कैमरे अपनी जेब में रख लिया और मंदिर में दर्शन करने के लिए आगे बढे।
मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिए हमलोगों ने आराम से दर्शन किया और थोड़ा समय वह पर आस-पास घूमने में बिताया। करीब आधे घंटे बाद हम शिमला के और पर्यटक जगहों पर जाने के लिए निकले। बाइक पर होने के कारण हमें कही दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ रहा था और आराम से जिधर चाहते उधर की तरफ निकल लेते।
शाम होते-होते हमने शिमला की सभी प्रसिद्ध जगहों को देख लिया जैसे शिमला रेलवे स्टेशन, समर हिल, एक अंग्रेजो की बनाई हुई पुरानी सी ईमारत आदि। इसके अलावा कुछ और जगहों पर भी गए लेकिन नाम याद नहीं आ रहा है।
शिमला घूमने के बाद हमलोग वापस होटल आये और चाय के लिए बोलकर थोड़ा आराम करने लगे। थोड़ी देर बाद जब वेटर ने दरवाजा खटखटाया तब जाकर हमारी नींद खुली। वेटर ने चाय दिया और खाने के बारे में पूछा तो हमने मना कर दिया की खाना हम बाहर खाएंगे। रात के 8 बजे हम माल रोड पर जाने के लिए निकले। होटल से माल रोड का रास्ता मुश्किल से 10 मिनट की पैदल दुरी पर था। हमलोग टहलते हुए माल रोड पहुचे। माल रोड पर खूब रौनक थी नव-विवाहित जोड़े हाथों में हाथ डाल कर घूम रहे थे।
हमलोग भी वहाँ सीमेंट के चबूतरों पर बैठ गए और आपस में बातचीत करने लगे। हमारे बगल में एक टैक्सीवाला बैठा हुआ था और हमारी बातचीत सुन कर, वह हमारे पास चला आया। उससे बातचीत करने के बाद हमे हाटु पीक नारकंडा के बारे में पता चला जो की शिमला से करीब 70 किलोमीटर दूर रामपुर वाले रोड पर था। उसने हमें बताया की इस समय भी वहाँ पर बर्फ पड़ी हुई है और टैक्सी से वहाँ जाने और आने के 2000 रूपये लगेंगे। हमने उसे बताया कि हम बाइक पर है तो उसने कहा कि फिर तो आपलोग आराम से चले जाओ, रास्ता भी ठीक है और शिमला से ज्यादा अच्छा है। उससे रास्ते की जानकारी लेकर, हम खाना खाने के लिए एक रेस्टोरेंट में गए, लेकिन रेस्टोरेंट में बहुत भीड़ थी तो हमने खाना पैक करवा लिए और होटल की तरफ चले।
होटल से नीचे उतरते समय तो रास्ते का पता नहीं चला लेकिन चढ़ाई में हमारी सांस फूलने लगी। होटल में आने के बाद हमने खाना खाया और नारकंडा के बारे में कुछ जानकारी इन्टरनेट के माध्यम से इकठ्ठा किया फिर सो गए।
सुबह के 7 बजे हम तैयार होकर नारकंडा के लिए निकले। सुबह-सुबह दुकाने बंद थी इसलिए नाश्ता रास्ते में करने को सोचकर आगे बढे। थोड़ी देर बाद हम कुफरी पहुँचे और सड़क के किनारे एक जगह परांठे, अचार और चाय का नाश्ता किया।
जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे दृश्य बहुत ही मनमोहक होते जा रहा थे, कदम-कदम पर नज़ारे बदल रहे थे।
जब हमने यात्रा शुरू किया तब हमारा प्लान सिर्फ अम्बाला तक था, फिर शिमला हो गया, और अब हम नारकंडा जा रहे थे। बाइक अपनी एक निश्चित रफ़्तार पर चल रही थी और जैसे -जैसे नारकंडा पास आ रहा था, हमारी आतुरता बढ़ती ही जा रही थी। नारकंडा जाने के लिए हम इसलिए भी तुरंत तैयार हो गए क्योंकि हम दोनों ने अबतक बर्फ से ढँके पहाड़ नहीं देखे थे, या यूँ कहे तो बर्फ ही नहीं देखा था (फ्रीज वाला छोड़ कर).
पहाड़ी जगह होने के बावजूद, शिमला से नारकंडा तक का रास्ता बहुत ही अच्छा था, हमलोग भी रास्तों का मज़ा लेते हुए और हर 4-6 किलोमीटर पर रुकते-रुकाते सुबह के 10:30 हम नारकंडा पहुँचे। वहाँ हमलोग थोड़ी देर रुक कर चाय पीया और हाटु पीक जाने के लिए रास्ते की जानकारी लिया।
नारकंडा से हाटु पीक करीब 7-8 किलोमीटर दूर है और नारकंडा से थोड़ा सा आगे जाने पर दांये हाथ को हाटु पीक के लिए अलग रास्ता कटता है। हाटु पीक का रास्ता ज्यादा चौड़ा नहीं है, अगर आमने-सामने से एक बाइक और एक कार आ जाये तो साइड देने के लिए जगह देखनी पड़ती है। साथ ही एकदम खड़ी चढ़ाई है जिसके एक तरफ पहाड़ है और दूसरी तरफ खाई। रास्ते भर छोटी-छोटी बजरी गिरी हुई थी जिससे बाइक को फिसलने का भी डर लगा रहता था, और अगर बाइक फिसले तो फिर सीधे सैकड़ो फ़ीट गहरी खाई में।
मैंने विनोद से बोला कि इस रास्ते का वीडियो बना ले, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी। वैसे थोड़ा सा डर मुझे भी लग रहा था क्योंकि मैंने भी ऐसे रास्तों पर कभी बाइक नहीं चलाया था। बाइक भी अधिकतर पहले या दूसरे गियर में ही चल रही थी।
हाटु पीक से करीब दो किलोमीटर पहले से ही सड़क पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई थी और जैसे ही हमने उसके ऊपर बाइक चलाने की कोशिश की, बाइक आगे जाने की बजाय पीछे की तरफ फिसलने लगी। हमारे पीछे कुछ फ़ीट पर खाई थी और रोकने के बावजूद बाइक पीछे की तरफ फिसल रही थी इसलिए मैंने बाइक को दाहिने हाथ के तरफ गिरा दिया जिससे बाइक का हैंडल बर्फ में धंस गया और बाइक रुक गयी।
फिर हमने बाइक को वही खड़ा किया और पैदल ही आगे की तरफ चल दिए। चारो तरफ बर्फ ही बर्फ फैली हुई थी और हमने भी ऐसीं बर्फ पहली बार देखा तो हमलोग भी उसमे खेलते हुए आगे बढ़ने लगे। थोड़ी देर बाद हमे महसूस हुआ कि हमारे जूतों में बर्फ का पानी जा रहा है लेकिन अब इतना आगे आने के बाद कुछ किया भी नहीं जा सकता था, वैसे रास्ते की शुरुआत में ही बर्फ वाले जूतें या पन्नी किराये पर मिल रहा था लेकिन हमें कुछ पता ना होने के कारण हमने उसपर ध्यान नहीं दिया था।
एक तो रास्ता पूरा बर्फ से ढँका हुआ था, दूसरा हमारे पैर के पंजे गीले होने लगे थे और हमारे जूते भी फिसल रहे थे, इसलिए डर भी लग रहा था क्योंकि दूसरी तरफ खाई थी और अगर फिसले तो सीधा नीचे गिरेंगे।
खैर किसी तरह से हम हाटु पीक पर पंहुचे। ऊपर ही एक मंदिर भी बना हुआ है जहा मरम्मत का कार्य चल रहा था इसलिए अंदर जाना मना था। हमने बाहर से ही प्रणाम किया और फिर आस-पास घूमने लगे। वहाँ से हर तरफ का दृश्य बहुत ही लुभावना था। जिधर निगाह डालो उधर एक से बढ़कर एक मनमोहक नज़ारे थे (कम से कम मेरे लिए) और सामने की तरफ शायद हिमालय श्रेणी की बर्फ से ढँकी चोटिया दिख रही थी।
हम थोड़ी देर वहाँ पर बैठे, कुछ फोटो खिंचे और फिर नीचे उतरना शुरू किया। नीचे की तरफ आते हुए हमें एक स्थानीय आदमी मिला, हम उससे बातचीत करते हुए और वहाँ के बारे में और जानकारी लेते हुये धीमे-धीमे नीचे आ रहे थे की अचानक हमे कुछ लोगो की चीख-पुकार सुनाई दिया।
हम तेज़ी से आगे बढ़े और वहां पहुँचकर देखा कि 6-7 औरतें और बच्चे बर्फ में खेलने के लिये मुख्य रास्ते से नीचे उतरे थे और अब वही फ़स गए। जब भी वें ऊपर आने की कोशिश करते तब पीछे की तरफ फिसलने लगते और पीछे की तरफ हजारों फ़ीट गहरी खाई थी।
लोग वहां खड़े होकर तमाशा देख रहे थे लेकिन कोई बचाने के लिऐ आगे नहीं आ रहा था, फिर हमने रास्ते में खड़ीं 3-4 महिलायों से स्कार्फ़/दुपट्टा/शाल आदि लिया और उनको एक में बांध कर एक लंबी रस्सी की तरह बनाया। फिर उससे एक-एक करके उन सबको बाहर खींच कर निकाला।
हमलोगों को अगले दिन ऑफिस जाना था और समय धीरे-धीरे बीत रहा था अतः हमलोग जल्दी से चलते हुए बाइक के पास आये और अपनी दिल्ली की वापसी यात्रा शुरू किया।
दोपहर के 3 बजे हम शिमला वापस पंहुचे और एक ढाबे पर रुक कर खाना खाया। मैंने पहाड़ो में कभी रात में बाइक नहीं चलाया था इसलिए यही कोशिश कर रहा था कि सूरज छिपने से पहले पहाड़ी रास्तों से बाहर आ जाये और हुआ भी यही, अँधेरा होते-होते हम जीरकपुर पहुँच गए।
जीरकपुर में थोड़ी दूर रुक कर हमने आराम किया और फिर वहां से चले तो सीधे पानीपत के पास रात के खाने के लिए रुके।
रात के करीब 12 बजे हम दिल्ली पहुचे और नहाने के बाद सीधे जाकर सो गए।
इस यात्रा में हम दोनों का दिल्ली से दिल्ली तक करीब 2-2 हजार रूपये का खर्चा आया।
looks interesting
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Thanks Harshita, just trying to start writing…
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Grt Sangam and Vinod…. Keep safety in ind and such trips become memorable…. gud guys..
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Thank You so much Sir for your kind appreciation.
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Nice attempt
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Thank you bhai..
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संगम जी ब्लॉग की दुनियां में आने पर आपका स्वागत है। आपके ब्लॉग का नाम बडा ही खूबसूरत है। और आपकी यह पोस्ट भी । दोस्त के संग व भी बाईक पर यात्रा बढिया रही बाकी आपने बहुत सुंदर फोटो भी लगाए हैं।
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धन्यवाद सचिन भाई, और इस ब्लॉग का नाम सजेस्ट करने के लिए भी बहुत बहुत शुक्रिया।
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